उम्र-ऐ-दराज मांग कर लाये थे चार दीन |
दो आरजू मैं कर गए, दो इंतेजार मैं ||
एक फुरसत-ऐ-गुनाह मीली, वह भी चार दीन |
देखे है हमनें हौसले परवर-देगार के ||
वह कौन है जीन्हे तौबा की मील गई फुरसत |
हमें गुनाह भी करने को ज़िंदगी कम है ||
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