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Hindi & Urdu Poetry
Thursday, January 10, 2008
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे ..
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे |
चाँद कहते है कीसे खूब समझते होंगे ||
मैं समझता था मुहब्बत की ज़बान खुश्बू है |
फूल से लोग इसे खूब समझते होंगे ||
भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले |
आज के प्यार को मायूब समझते होंगे |
(बशीर बद्र द्वारा रचीत)
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वो दील नसीब हुआ जीस को दाग भी ना मीला
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे ..
वो थका हुआ मेरी बाहों मैं ज़रा सो गया ....
जींदगी भर मुझे धोखा दीया गया ...
भरोसा....
इतनी मीलती है मेरी गजलों से सूरत तेरी .....
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