Saturday, January 12, 2008

वो दील नसीब हुआ जीस को दाग भी ना मीला


वो दील नसीब हुआ जीस को दाग भी ना मीला |

मीला तो गम-कदा जीस में चीराग भी न मीला ||

गई थी कहके मैं लाती हू जुल्फ-ऐ-यार की बू |
फीरी तो बाद-ऐ-सबा का दीमाग भी न मीला ||
[बाद-ऐ-सबा = morning breeze; दीमाग=pride]

असीर करके हमें कीयों रीहा कीया सैयाद |
वो हमसफ़र भी छूटे वो बाग़ भी न मीला ||
[असीर=prisoner; सैयाद=hunter]

भर आए महफील-ऐ-साकी में क्यों ना आँख अपनी |
वो बे-नसीब हैं हम खाली अयाग भी ना मीला ||

[अयाग=cup]

चीराग लेके इरादा था बखत धूँधते |
शब-ऐ-फीराक थी कोई चिराग भी न मीला ||

ख़बर को यार की भेजा था गम हुआ ऐसा |
हबास-ऐ-रफ्ता का अब तक सुराग भी ना मीला ||
[हबास--रफ्ता =lost senses]

बाग़-ऐ-जहाँ में वोह अंदलीब मैं हम |
चमन को फूल मीले हम को दाग भी न मीला ||
[अंदलीब=nightingale]

Thursday, January 10, 2008

वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे ..


वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे |

चाँद कहते है कीसे खूब समझते होंगे ||

मैं समझता था मुहब्बत की ज़बान खुश्बू है |
फूल से लोग इसे खूब समझते होंगे ||

भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले |
आज के प्यार को मायूब समझते होंगे |

(बशीर बद्र द्वारा रचीत)

वो थका हुआ मेरी बाहों मैं ज़रा सो गया ....


वो थका हुआ मेरी बाहों मैं ज़रा सो गया तो क्या हुआ |

अभी मैंने देखा है चाँद भी कीसी शाख-ऐ-गुल पे झुका हुआ ||

जीसे ले गई है अभी हवा वो वरक था दील की कीताब का |
कहीं आंसुओं से मीटा हुआ, कहीं आंसुओं से लीखा हुआ ||

कई मीले रेत को काट कर कोई मौज फूल खिला गई |
कोई पेड़ प्यास से मर रहा है नदी के पास खडा हुआ ||

मुझे हादसों से सजा सजा के बहुत हसीं बना दीया |
मेरा दील भी जैसे दुल्हन का हाथ हो मेहंदीयों से रचा हुआ ||
वही ख़त के जीस पे जगह जगह दो महकते होंठो के चाँद थे |
किस्सी भूले-बीसरे से ताक पर तह-ऐ-गर्द होगा दबा हुआ ||

वही शहर है वही रास्ते वही घर है और वही लान भी |
मगर उस दरीचे से पूछना वो दरख्त अनार का क्या हुआ ||

मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र मगर इस शरार की बीसात क्या |
यह चराग कोई चराग है न जला बुआ न बुझा हुआ ||

(बशीर बद्र द्वारा रचीत)

Tuesday, January 8, 2008

जींदगी भर मुझे धोखा दीया गया ...


जींदगी भर मुझे धोखा दीया गया |

मैं जींदा नहीं हूँ यह समझा गया ||

वह तो थी एक जगह तीनको की |
महल कह कर जीस्में मुझे ठहरा दीया गया ||

हौसले के दम पर बगाबत न कर सकूं |
मेरी आन को पहले ही दबा दीया गया ||

है सुकरात छूपा मुझमें, मालूम हुआ तब |
जब ज़हर का प्याला मेरे सामने रखवा दीया गया ||

जींदगी भर मुझे धोखा दीया गया |
मैं जींदा नहीं हूँ यह समझा गया ||

भरोसा....


वह सब कीया, पर
भरोसा नही कीया |
कभी कीसी के साथ धोखा नही कीया ||

दीवाली के दीये लहू से जलाये है मैंने |
जुगनू पकड़ कर घर मैं उजाला नही कीया ||

मगरूर जींदगी फ़क़त गरीबी मैं काट दी मैंने |
मगर कीसी अमीर के सामने सजदा नही कीया ||

यह सर्द रातें नंगी सडको पर काट दी मैंने |
चादर खीच कर कीसी को रुसवा नही कीया ||

वह सब कीया, पर भरोसा नही कीया |
कभी कीसी के साथ धोखा नही कीया ||

इतनी मीलती है मेरी गजलों से सूरत तेरी .....


इतनी
मीलती है मेरी गजलों से सूरत तेरी,
लोग तुझे मेरा महबूब समझते होंगे ||

कुछ इस तरह से मीली है बंद कमरों मैं सोहरत मुझे,
की नीकलने को यह आंसू भी तरसते होंगे ||

जीने के मौके तो बहुत आए जीन्दगी मैं मगर,
यह सोच कर छोड़ दीया की वह खुशी देंगे ||

झूठे और लोभी ख़ुद को भी धोखा देते है,
आगे को कहकर, वह कदम पीछे लेते होंगे ||

सभी करते है एक-झलक-ऐ-इनतेजार तेरा,
तुझे देखने के लीये चाँद तारे नीकलते होंगे ||

इन सुर्ख होंठो के लाली की कोई मीसाल नही,
इन जैसे फूलों को शायद गुलाब कहते होंगे ||

तेरी आंखो के नूर से दो जहाँ मुकम्मल है,
इसी को शायद जन्नत-ऐ-नूर कहते होंगे ||

सर्द शाम मैं तेरा वह कोठे पर जुल्फों का झटकना,
इस अदा पर कीतने आशीक मर गए होंगे ||

इतनी मीलती है मेरी गजलों से सूरत तेरी,
लोग तुझे मेरा महबूब समझते होंगे ||