Sunday, April 27, 2008

कुछ देर फीर पास आए


---
एक चेहरा --

एक चहेरे की मासूमियत पर नीसार हो गए |
गम--दील मैं कुछ खुसी मिलती चली गई ||

गुज़र गए गली--आशीक से वो कभी |
सासों मैं एक मिठास घुलती चली गई ||

बेपर्दा इस कदर वो कभी थे |
जाने क्यों आज हया घटती चली गई ||

चले आए जनाजे-ऐ-आशीक पर वह भी |
इस आस मैं कुछ सासे अटकी रह गई ||

कल सुबह तुम्हे देखा रास्ते में कुछ दूर से आते हुए |
कुछ देर फीर पास आए ... फीर दूरीयाँ बदती चली गई ||


कुछ लोग सहर मैं हमसे यूं ही खफा है


कुछ लोग सहर मैं हमसे यूं ही खफा है |

हर कीसी से अपनी भी तबीयत नही मीलती ||

जो मील गए रास्ते मैं तो याद कर नादानीया |
सर झुक जाता है उनका और नज़र नही मीलती ||

कहते है शाम की तन्हाईयों मैं याद गहराती है |
यह वह शाम है जीसकी सुबह नही मीलती ||

यह दुनीयाँ एक धोखा है सोच के कदम रखना 'सुमीत' |
यह वो तीलीस्म है जीसमे फुरसत-ऐ-दुआ नही मीलती ||

Thursday, April 10, 2008

सारे कमाल उसके थे

सफर तो मैंने कीया था वरना साजो-समान उसके थे |
मैं तो बस राजदार था उसका वरना सारे राज़ उसके थे |

वह दरीया में प्यासा बैठा था जबकी समुन्दर तमाम उसके थे |
वह धूप में बैठा है छाओं देने को जबकी दरख्त सारे सायादार उसके थे |

यूं तो बज़ाहीर लोगो में मैंने रीज्क बांटा था लेकीन दर्पर्दा सारे हाथ उसके थे |
मैंने कमाल बुलंदी पर जाके सोचा सुमीत, यह तो सारे कमाल उसके थे |

[बज़ाहीर = Outwardly ; रीज्क = Livelihood, Subsistence ]