Sunday, April 27, 2008
कुछ लोग सहर मैं हमसे यूं ही खफा है
कुछ लोग सहर मैं हमसे यूं ही खफा है |
हर कीसी से अपनी भी तबीयत नही मीलती ||
जो मील गए रास्ते मैं तो याद कर नादानीया |
सर झुक जाता है उनका और नज़र नही मीलती ||
कहते है शाम की तन्हाईयों मैं याद गहराती है |
यह वह शाम है जीसकी सुबह नही मीलती ||
यह दुनीयाँ एक धोखा है सोच के कदम रखना 'सुमीत' |
यह वो तीलीस्म है जीसमे फुरसत-ऐ-दुआ नही मीलती ||
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