Tuesday, January 8, 2008

इतनी मीलती है मेरी गजलों से सूरत तेरी .....


इतनी
मीलती है मेरी गजलों से सूरत तेरी,
लोग तुझे मेरा महबूब समझते होंगे ||

कुछ इस तरह से मीली है बंद कमरों मैं सोहरत मुझे,
की नीकलने को यह आंसू भी तरसते होंगे ||

जीने के मौके तो बहुत आए जीन्दगी मैं मगर,
यह सोच कर छोड़ दीया की वह खुशी देंगे ||

झूठे और लोभी ख़ुद को भी धोखा देते है,
आगे को कहकर, वह कदम पीछे लेते होंगे ||

सभी करते है एक-झलक-ऐ-इनतेजार तेरा,
तुझे देखने के लीये चाँद तारे नीकलते होंगे ||

इन सुर्ख होंठो के लाली की कोई मीसाल नही,
इन जैसे फूलों को शायद गुलाब कहते होंगे ||

तेरी आंखो के नूर से दो जहाँ मुकम्मल है,
इसी को शायद जन्नत-ऐ-नूर कहते होंगे ||

सर्द शाम मैं तेरा वह कोठे पर जुल्फों का झटकना,
इस अदा पर कीतने आशीक मर गए होंगे ||

इतनी मीलती है मेरी गजलों से सूरत तेरी,
लोग तुझे मेरा महबूब समझते होंगे ||

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